भारत और उज्बेक में फर्क महसूस नहीं करती फिरोजा सूरजकुंड,

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इस बार के सहयोगी देश उज्बेकिस्तान की शिल्पकार महिलाएं भारत आकर काफी प्रसन्न हैं। ताशकंद से आई फिरोजा का मानना है कि भारत और उज्बेकिस्तान की सभ्यताएं मिलती-जुलती हैं। इसलिए हमें सूरजकुंड आकर भी लगता है कि हम अपने ही देश में हैं।सुशिक्षित शिल्पकार फिरोजा कुर्बानोवा सूरजकुंड मेले में तीसरी बार तथा भारत में पांचवीं दफा आई हैं। उसका मानना है कि भारत एक बहुत ही खूबसूरत देश है। वो यहां आकर काफ अपनापन महसूस करती है। एक समय में बाबर, हुमायूं, अकबर भारत में रहते थे और उनका परिवार उज्बेकिस्तान के नजदीक का था। यहां आगरा का ताजमहल, दिल्ली का लाल किला देखकर लगता है उज्बेकिस्तान और इंडिया में कोई फर्क नहीं है।रंगदार लुभावने वस्त्र तथा प्राकृतिक नगीनों के आभूषण लेकर आई फिरोजा ने स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ इस्लाम खारीमोव से शिक्षा प्राप्त की। विगत आठ वर्षों से वह ताशकंद में एफ एफ कलैक्शन के नाम से अपना बुटीक चला रही है और अपने उत्पाद बेल्जियम देश को निर्यात भी कर रही हैं। वो बताती हैं कि उनका जन्म 8 जून, 1988 को हुआ था। उनकी माता मैक्स फिरात का निधन हो चुका है और पिता सादुल्ला एक सेवानिवृत्त कर्मचारी हैं। फिरोजा के पति हैंड टू हैंड फाइटिंग के नेशनल चैंपियन हैं।फिरोजा ने बताया कि उसका बेटा सईद इमरान चौथी कक्षा का विद्यार्थी है। उसकी दो बहनें व एक भाई है। भाई गाड़ी चलाता है और बहनें कारोबार में उसकी मदद करती हैं। वो कहती हैं कि परिवार ने शुरू से उसे आगे बढऩे का हौंसला दिया है, इसीलिए वह आज फरीदाबाद में है। तैंतीस वर्षीय इस उज्बेक महिला को भरोसा है कि सूरजकुंड आकर उसके व्यापार में और इजाफा होगा।

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