Front News Today: फरीदाबाद के प्रमुख पर्यटक स्थल, ध्यान-कक्ष द्वारा आजकल समाज को अनुशासित जीवन जीने की राह पर प्रशस्त करने का उत्तरदायित्व बड़े ही कुशल तरीके से निभाया जा रहा है। इसी दिशा में जीवन को उचित मार्ग पर प्रशस्त करने के इच्छुक विभिन्न वर्गो के सदस्यों के झुंड वहाँ नित्य ही देखने को मिलते हैं। इसी संदर्भ में आज भी ध्यान-कक्ष में फरीदाबाद के ग्लोबल ओरफनेज ट्रस्ट के बच्चे व सहयोगी, गुरुग्राम की योगा टीम एवं विभिन्न बी0 एड0 कालेज के लैक्चरास एवं छात्राएँ पधारी हुई थी। यहाँ उपस्थित सज्जनों को समझाया गया कि युग की हालत को देखते हुए अब आवश्यकता है संभलने की और संभालने की। अत: समभाव-समदृष्टि की युक्ति के अनुशीलन द्वारा अब हमने अपने आप को, अपने परिवार को व सारे समाज को संभालना है। इसके लिए कदम-कदम पर आत्मनिरीक्षण करते हुए, आत्मसंयम अपनाने की विशेष आवश्यकता है 1योंकि इस द्वारा ही अनुशासित ढंग से मन व इन्द्रियों को वश में रखा जा सकता है। इसी क्रिया के अमयास व वैराग्य द्वारा ही चित्तवृत्तियों का निरोध यानि शमन भी किया जा सकता है। परिणामस्वरूप अंत:करण की शुद्धि हो सकती है तथा मन हानिकारक व बुरी वस्तुओं या बातों के प्रभाव से बच सकता है।
यहाँ अंत:करण के विषय में बताते हुए सजनों को यह स्पष्ट किया गया कि अपने मन, चित्त व बुद्धि को निर्मल व शुद्ध बनाने हेतु अंत:करण यानि भीतरी इन्द्रिय की स्वच्छता बनाए रखना सर्वोपरि है जिसकी ओर किसी का ध्यान नहीं जाता जबकि एकमात्र इसकी स्वच्छता से ही मनुष्य के भाव, स्वभाव, वृत्ति, स्मृति, धारणा, निश्चय इत्यादि परिशुद्ध हो सकते हैं। इसीलिए संयम को ध्यान, धारणा व समाधि का अचूक साधन भी माना गया है और कहा गया है कि केवल इसी साधन द्वारा ही मनुष्यों में इन्द्रिय लालसा और भोगभाव मर्यादित रह सकते हैं तथा मन, वचन, कर्म की निर्मलता बनी रह सकती है। आज के विश्रृंखल समाज में संयम को अपनाने की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा गया कि याद रखो संयम द्वारा आप में विषय-विकारों को त्यागने की क्षमता बढ़ सकती है और आप तेजोमय व चरित्रवान बन यानि निर्विकारी हो अपने जीवन के परम पुरूषार्थ को सिद्ध कर विश्राम पा सकते हैं। अंतत: उपस्थित सभी सजनों को जागृति में लाने हेतु इन श4दों के द्वारा सुदृढ़ता देने का यत्न किया गया:-
संयम हो अपना मजबूत इतना, किसी से न हो लेना या देना
जो भी हमे इस जग से मिला है, आओ वह सब जग को लौटा दें
न तन था ये अपना, न धन था ये अपना, जिसमें हम सब लिपटे पड़े हैं
हँसी आ रही है करनी पे अपनी, करना था कुछ पर 1या कर रहे हैं
जीवन मिला था जीने की खातिर, भ्रम जाल में फँस 1यों मर रहे हैं
दुख-सुख की पीड़ा से हो कर के आतुर, खुद ही खुद से 1यों डर रहे हैं
लेने की आदत ने लालच दिखाया, लालच दिखा के मोह में फँसाया
देंगे जो वापस तो संतोष होगा, तभी तो यह मन ख़ामोश होगा
धैर्य अपना निर्विकार था रहना, चित्त में आनन्द का एहसास था करना
अधीरता ने है चंचलता में फँसाया, रोना सिखाया झुखना सिखाया
यह तेरा है मेरा है जब तक करेंगे, लड़ते रहेंगे, लड़ाते रहेंगे
जितनी भी भावी, सन्तानें होगी, द्वि भाव की राह पर ही चलेगी
इन्सानों अब तो होश में आओ, संभलो संमभालो सजन भाव अपनाओ
सीखो सिखाओं संयम से रहना, संयम में रह समभाव अपनाओ
अंत में सबको समझाया गया कि समभाव अपना कर हर प्रकार की विकार-वृत्तियों व भेदभाव से ऊपर उठने वाला, समदृष्ट, आत्मानुशासित, जितेन्द्रिय, निर्विकारी साधक ही हर अवस्था व परिस्थिति में एकरस व एकरूप बना रह सकता हैं और जीते-जी जन्म-मरण पर विजय प्राप्त कर, परमगति को प्राप्त कर सकता है। इस महत्ता के दृष्टिगत आप भी समभाव-समदृष्टि दा सजनों दिल में अमल लियाओ, दिल में अमल लिया के सजनों, दिल में अमल कमाओ, दिल नाल दिल मिलाओ।
यहाँ हुई सब बातचीत को सुन-समझ कर उपस्थित सदस्यों ने कहा कि वसुन्धरा कैमपस व निर्मित समभाव-समदृष्टि के स्कूल की भव्य शोभा वास्तव में कमाल है। अत: हम अपने मित्रो, परिवारजनो व सगे समबन्धियों के साथ ध्यान-कक्ष अवश्य विजिट करेंगे। उन्हें कहा गया कि अधिक जानकारी के लिए, आप ध्यान-कक्ष की वेबसाइट 222.स्रद्ध4ड्डठ्ठद्मड्डद्मह्यद्ध.शह्म्द्द या फिर टेलिफोन न0 ८५९५०७०६९५ पर समपर्क कर सकते हैं।