सड़कें न हो जरुरतमंदों का घर……

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  • अतुल मलिकराम (लेखक और राजनीतिक रणनीतिकार)

हमारे शहरों के हर कोने में, जहाँ पर जीवन एक अलग लय में बहता है और जहाँ सपनों को उड़ने के लिए पंख मिलते हैं, इसके पीछे एक कड़वी हकीकत छिपी है, जिसे अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है। शहरी जरूरतमंद, जो शहर को जीवित रखने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं, उन्हें जीवन की बुनियादी जरूरतों के बिना, खुद को ही संभालना पड़ता है। गर्म भोजन, साफ कपड़े और सोने के लिए सुरक्षित जगह उनके लिए सिर्फ एक दूर का सपना होता है।

सोचिए, यदि आपका घर सड़क के किनारे हो और पूरी तरह से अस्थायी हो, जो मौसम की मार झेलने के लिए सबसे आगे खड़ा हो और सड़क के किनारे होने की वजह से हर पल अपने ऊपर खतरा मोल लिए हो, तो यह कैसा लगेगा? यह कल्पना में भी अच्छा प्रतीत नहीं हो रहा है न……! लेकिन कई लोगों के लिए, यह सिर्फ एक काल्पनिक स्थिति नहीं है, बल्कि एक कठिन सच है, जिसका सामना वे हर दिन करने को मजबूर हैं। सड़कें, जो प्रगति का प्रतीक होनी चाहिए, एक जेल बन जाती हैं जिसमें कोई बचाव, कोई सुरक्षा नहीं है। इन सड़कों पर रहने वाले परिवार, जिसमें छोटे बच्चे और बुजुर्ग भी शामिल हैं, अपने ही जीवन से संघर्ष करते हैं, और साथ ही किस्मत की मार और समाज की उदासीनता बिना किसी शिकायत के सहते चले जाते हैं।

आप अक्सर इन लोगों को सड़क के किनारे देख सकते हैं, जो फटे हुए कंबल के नीचे सिमटे हुए मिल जाएँगे। उनके सपने बड़े ही सरल होते हैं, सिर्फ एक ऐसी जगह मिल जाए, जहाँ वे सुरक्षित रह सकें, बिना डर के उठें और अपने परिवार के साथ सुकून से रह सकें। फिर भी, ये सपने कई लोगों को हासिल नहीं हो पाते, और ये लोग गरीबी के लगातार संघर्ष के साए में ही अपना सारा जीवन निकाल देते हैं। यह कितना हृदयविदारक है कि किसी की एक पल की जरा-सी लापरवाही कैसे किसी के जीवन को बर्बाद कर सकती है। एक तेजी से चलती कार, एक ध्यान भटका हुआ ड्राइवर, और एक पल में एक जीवन समाप्त हो जाता है। निर्दोष पीड़ित, जिसकी केवल इतनी गलती थी कि उसने एक रात बिताने के लिए सड़क के किनारे का सहारा लिया था, एक्सीडेंट की वजह से मरने वालों की संख्या में महज़ एक दुःखद आँकड़ा बन कर रह जाता है।

हाल ही में वित्त वर्ष 2024 के लिए बजट पेश किया गया, जिसमें हाशिए पर खड़े लोगों के लिए एक उम्मीद की किरण उभरी है। सरकार ने अगले पाँच सालों में एक करोड़ शहरी गरीबों और मध्यम वर्गीय परिवारों की आवासीय जरूरतों को पूरा करने के लिए 2.2 लाख करोड़ रुपए की केंद्रीय सहायता की घोषणा की है, जो प्रधानमंत्री आवास योजना-शहरी के तहत आएगी। यह पहल सिर्फ एक नीति नहीं है, बल्कि उन लोगों के लिए एक वरदान भी है, जो प्रगति की दौड़ में सबसे पीछे रह गए हैं।

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की घोषणा में एक ब्याज सब्सिडी भी शामिल है, जो सस्ती दरों पर लोन देने का वादा करती है, जिससे कई लोगों का अपने घर का मालिक बनने का सपना सच हो सकेगा। प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत तीन करोड़ अतिरिक्त घरों की योजना के साथ, सरकार हर नागरिक को एक सुरक्षित जगह देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठा रही है।

यह पहल हमारे देश के कमजोर और जरूरतमंद लोगों के लिए एक अत्यंत आवश्यक कदम है। यह उनकी संघर्षों की मान्यता है और उन्हें एक बेहतर भविष्य देने की प्रतिबद्धता है। सिर पर छत की परिभाषा केवल आश्रय मात्र ही नहीं होती है, बल्कि यह गरिमा, सुरक्षा और उम्मीद का प्रतीक भी होती है। यह लोगों को बिना लगातार विस्थापन के डर के, एक बेहतर जीवन बनाने के लिए आवश्यक आधार प्रदान करती है।

अगले पाँच वर्षों की ओर गौर करेंगे, तो हम पाएँगे और यह सच भी है कि हर आँकड़े के पीछे एक इंसान होता है, जिसे सपने, आकांक्षाएँ और गरिमा के साथ जीवन जीने का हक है। आइए, हम भी सरकार के साथ मिलकर उन सभी पहलों का समर्थन करें, जो शहरों में रहने वाले गरीबों को बेहतर जीवन देने का प्रयास करती हैं और सुनिश्चित करें कि वे शहर की सड़कों पर अपना जीवन जीने के लिए मजबूर न हों। साथ मिलकर, हम एक ऐसे समाज की स्थापना कर सकते हैं, जहाँ हर किसी को एक बेहतर जीवन का उचित मौका मिले, और जहाँ सड़कें प्रगति के रास्ते हों; गरीबी की जेल नहीं।

एक घर सिर्फ चार दीवारें और एक छत से ज्यादा होता है। यह एक आश्रय, आराम का स्थान और उम्मीद का प्रतीक होता है। आइए, इस सपने को हर नागरिक और विशेष रूप से हर एक जरूरतमंद के लिए वास्तविकता बनाने की कोशिश करें, और साथ ही यह सुनिश्चित करें कि हमारी और हमारे देश की प्रगति और समृद्धि की यात्रा में कोई भी पीछे न छूटे।

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