Front News Today: श्री वृंदावन खाकचौक स्थान में पूज्य श्री देवदास पहाड़ी बाबा सरकार विराजते थे । वहां विचरण करते करते कई बार खाकचौक मे मंदसौर जिले के एक महंत आते थे । उनका नाम था भले बाबा क्योंकि वे बात बात मे भले शब्द का अधिक प्रयोग करते थे । अतः लोग उन्हें भले बाबा कहते थे । मंदसौर जिले में एक स्थान के महंत थे और हर साल वे एक यज्ञ करते थे । खाकचौक मे धुना घर म् अपना आसान लगाते थे । वहां प्रातः का भजन साधान समाप्त करके सेवा में लग जाते थे । संतो की सेवा और झाडू लगाने की सेवा भले बाबा करने लग जाते थे । कभी नीचे, कभी ऊपर, कभी बाहर झाड़ू लगते रहते थे । कई घंटे झाड़ू लगते थे । आश्रम मे झाडू सेवा के लिए एक सेवक थे और एक ब्रजवासन बाई जी थी जिनका नाम सुमित्रा देवी था ।
एक दिन श्री पहाड़ी बाबा ने भले बाबा को अपने पास बुलाया और बहुत जोर की डांट लगते हुए कहा – ऐ भले ! तुमको एक जगह बैठकर चैन नही पड़ता । मै सफाई करने वालो को काम के पैसे देता हूँ, दो दो सेवक है झाडू सेवा करने के लिए । तुम क्यों झाडू के लिए डोलते हो, जाओ बैठो अपने आसान पर और भजन करो । खबरदार अब झाडू लगाई तो । अब भले बाबा गए भीतर और अपना आसान, कमंडल आदि लेकर महाराज जी के पास आकर साष्टांग दंडवत किया और बोले – महाराज ! इस बालक के अपराध क्षमा करना, अब मै यहां से जा रहा हूँ । लगता है दोबारा लौटकर नही आ पाएंगे । श्री पहाड़ी बाबा बोले – क्यो जा रहे हो भले । तुम तो पूरे सावन भादो ठहरते थे फिर इस बार क्यो जाना चाहते हो ?
भले बाबा बोले – जब जवानी थी तब इसी खाकचौक मे रसोई बनाते थे, बर्तन मांजते थे । अब तो बुढापा है, अब और कोई सेवा हमसे बनती नही है । केवल थोड़ा बहुत झाडू लगाने की सेवा हो सकती है, वही कर लेता हूं । बिना सेवा के प्रसाद कैसे पाऊंगा ? और बिना प्रसाद पाये शरीर कैसे चलेगा ? आपने सेवा के लिए ही मना दिया । इसीलिए अब मै यहां नही आऊंगा और ऐसा कहते कहते रोने आग गया साधु । श्री पहाड़ी बाबा बोले – ऐसे कैसे चला जायेगा, बकबक करता है । जाएगा जाएगा कहता है । अब मैं मना नही करूँगा, खूब झाडू लगाओ । शिष्य को बुलाया और कहा – ये भले बाबा का आसन कमंडल उठाओ और अंदर रख दो, ये कही नही जाएगा ।
जैसे ही श्री पहाड़ी बाबा ने सेवा की आज्ञा दी वैसे भले बाबा प्रसन्न हो गए । जिस समय की यह घटना है, उस समय भले बाबा की आयु 90 वर्ष की थी । श्री पहाड़ी बाबा कहते थे कि यही है सच्चे साधु जो किसी भी अवस्था मे सेवा का त्याग नही करते । संत सेवा, गौ सेवा, स्थान सेवा जैसी बन सके करते रहते है । सच्चे साधु सेवा करने के लिए सदा तत्पर रहते है और कुछ ऐसे असाधु होते है कि उन्हें सेवा बात दो तो भाग जाते है ।