फरीदाबाद: भूपानि स्थित गवर्मेंण्ट सीनियर सेकेण्डरी स्कूल के छात्र-छात्राएँसभी के लिए यह अत्यंत हर्ष का विषय है कि भौतिक शिक्षा के साथ-साथ आजकल आध्यात्मिक नैतिक शिक्षा की आवश्यकता भी अनुभव की जाने लगी है। इसी आवश्यकता को समझते हुए फरीदाबाद क्षेत्र के विद्यालय अपने स्कूल के छात्र-छात्राओं व अध्यापकों सहित फऱीदाबाद, ग्राम भूपानी स्थित, ध्यान-कक्ष यानि समभाव-समदृष्टि के स्कूल की भव्य शोभा देखने वसुन्धरा परिसर जा रहे हैं। इसी श्रृंखला में आज फरीदाबाद भूपानि स्थित, गवर्मेंण्ट सीनियर सेकेण्डरी स्कूल के छात्र-छात्राएँ भी, हरियाणा के इस प्रमुख श्रद्धा एवं पर्यटक स्थल को देखने आए। वसुन्धरा परिसर के मु2य द्वार से कतारों में आती विद्यार्थियों की यह पंक्तियाँ देखते ही बनती थी।
इस संदर्भ में ध्यान-कक्ष पधारने पर बच्चों को, उनके वास्तविक धर्म से परिचित कराते हुए बताया गया कि जिस प्रकार प्रत्येक वस्तु का अपना गुण व धर्म होता है उसी तरह मानव रूपी वस्तु का भी, जो गुण व धर्म है, वह है मानवता। इसी गुण व धर्म अनुकूल आचार व्यवहार करने से इंसान सत्वगुणी बन, सत्यज्ञान प्राप्त कर सकता है और इन्सानियत अनुरूप व्यवहार दर्शा सकता है। ऐसा करने से ही उसके अन्दर अहं भाव जाग्रत नहीं होता और वह स्वार्थपरता का त्याग कर परोपकार के कार्य करते हुए अपना जीवन सफल बना सकता है।
कहा गया कि इस बात को समझते हुए आप भी मानव होने के नाते, मानवता अपनाओ और इस हेतु अपने यथार्थ को जानो और मानो कि मैं और कुछ नहीं अपितु ईश्वर का अंश हूँ। यही मेरी वास्तविक अवस्था है। इस अवस्था में बने रहने हेतु मुझे अन्दरूनी वृत्ति में च्च्विचार ईश्वर आप नूं मान करज्ज् अपने वास्तविक परमात्म स्वरूप पर ठहरे रहना है व बैहरूनी वृत्ति में, शरीरबद्ध आत्मा होने के नाते इस जगत में विचरते समय आत्मस्वरूप में बने रहना है। इस प्रकार अन्दर-बाहर, अपने ही प्रकाश का सर्व-सर्व में अनुभव कर अपना जीवन सुखमय बनाना है।
फिर कहा गया कि हर मानव, सत्यज्ञान धारण कर, आत्मज्ञानी बनें इस हेतु ही इस ध्यान कक्ष से प्रयास किया जा रहा है ताकि मानव ब्राहृ, जीव व जगत के खेल का सत्य समझें और भ्रमरहित अवस्था को प्राप्त कर, स्वार्थपर मानवों द्वारा अपनाए, आडमबर युक्त भक्ति भावों का त्याग कर समभाव समदृष्टि हो जाएं। यह अपने आप में काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार जैसे संसारी दुर्भावों/स्वभावों से आजाद हो, पुन: सम, संतोष, धैर्य, सच्चाई, धर्म जैसे अलौकिक स्वभावों से अलंकृत हो, अपनी वास्तविक शोभा को प्राप्त होने जैसी महान बात है। अतैव आप भी पुरुषार्थ दिखा आत्मज्ञान प्राप्त कर ऐसे ही सजन पुरुष बन जाओ और इस धरा पर पुन: सतयुग जैसा समय ले आओ।
अंत में सभी को समझाया गया कि वर्तमान क्षणों को ऐसे ही न गँवाओ अपितु अपने जीवन की हर घड़ी को आनन्दमय व्यतीत करने की कला सीखो और सत्य धर्म पर पूर्ण निष्ठा से बने रह परोपकार प्रवृति में ढल जाओ। आशय यह है कि जीवन की घडिय़ों को व्यर्थ की सोचो या कामो में रत होकर टालो नहीं अपितु अपने हर पल का सार्थक ढंग से इस्तेमाल करना सीखो और इस हेतु निष्काम भाव से खुद को सर्वहित के कार्यों में लगाओ।