मेरी जान भी जाती है तो मेरे खून का एक एक कतरा देश के काम आयेगा – इन्दिरा गांधी

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Front News Today: 19 नवम्बर,आज लौह नेत्री इन्दिरा गांधी जी की जयंती है। जिस एकीकृत राष्ट्र के नेतृत्व की विरासत उन्हें मिली, उसकी अखंडता, विस्तार, गौरव एवं विकास के लिए उन्होंने संघर्ष से भरी गतिशील भूमिका ही नहीं निभाई, बल्कि उसकी एकता-अखंडता की वेदी पर अपनी शहादत भी दी। इन्दिरा जी ने हरित क्रांति और श्वेत क्रांति परवान चढ़ाकर अन्नाभाव से जूझते भारत की पीएल -480 की अमेरिकी खाद्य निर्भरता को इतिहास के बस्ते में समेट दिया और बढ़ती आबादी के बावजूद देश में खाद्य एवं दुग्ध उत्पादन के सरप्लस का युगान्तकारी अध्याय रचा था। लाभकारी कृषि का दौर सृजित किया और कृषि के साथ साथ भारत की वैज्ञानिक प्रगति के सिलसिले को भी ठोस योगदान के साथ आगे बढ़ाया। जमा पूंजी जमीन या दीवार में गाड़कर मर जाने की नियति जीने वाले भारतीय ग्रामीण समाज का बैंक राष्ट्रीयकरण करके बैंकिंग से सीधा परिचय स्थापित कराया और उनके माध्यम से कृषि एवं ग्रामीण विकास को नई गति प्रदान की। दूसरे चरण के भूमि सुधार तथा पूर्व रजवाड़ों एवं धब्बों के प्रिवीपर्स एवं विशेषाधिकारों का खात्मा कर सामंतशाही के बचे अवशेषों को भी दफन कर दिया। भारत को परमाणु शक्ति युग में प्रवेश कराया। एक समर्थ भारत रचने में सक्षम नेतृत्व देते हुए 1971 में न केवल द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद की दुनिया की सबसे बड़ी सामरिक जीत भारत के खाते में दर्ज कराई, बल्कि पाकिस्तान की ‘वर्टिकल सर्जरी’ करते हुये धर्म के आधार पर राष्ट्र बनाने की लिगेसी को खंडित कर दिया। दूसरी ओर भारत में सिक्किम का विलय कराकर भारतीय सीमाओं को विस्तार भी प्रदान किया। राष्ट्र को विघटित करने पर आमादा आतंक से समझौता नहीं कर निर्भयता एवं दृढ़ता से कदम उठाये एवं देश के लिये जीने एवं मरने के इस जज्बे की मुखर अभिव्यक्ति के साथ जीवन का यह कह कर बलिदान दे दिया कि इससे यदि मेरी जान भी जाती है तो मेरे खून का एक एक कतरा देश के काम आयेगा। इन्दिरा जी जब तक जीवित रहीं, अपने राजनीतिक जीवन में भी संघर्ष की मिसाल बन कर रहीं।

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