(Front News Today) उज्जैन का प्राचीन नाम उज्जयिनी है । उज्जयिनी भारत के मध्य में स्थित उसकी परम्परागत सांस्कृतिक राजधानी रही । यह चिरकाल तक भारत की राजनीतिक धुरी भी रही । इस नगरी कापौराणिक और धार्मिक महत्व सर्वज्ञात है। महाकाल मंदिर के पौराणिक इतिहास की बात करें तो महाकालेश्वर भारत के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है. मध्यप्रदेश के उज्जैन में स्थित, महाकालेश्वर भगवान का प्रमुख मंदिर है. भारत के प्रमुखदेवस्थानों में श्री महाकालेश्वर का मन्दिर अपना विशेष स्थान है. भगवान महाकाल काल के भी अधिष्ठाता देव रहे हैं। पुराणों के अनुसार वे भूतभावन मृत्युंजय हैं, सनातन देवाधिदेव हैं. उज्जयिनी भगवान् श्रीकृष्ण की शिक्षास्थली भी रही. वहीं ज्योतिर्लिंग महाकाल इस नगर की गरिमा बढ़ाते हैं। इसके आकाश में तारक लिंग है, पाताल में हाटकेश्वर लिंग है और पृथ्वी पर महाकालेश्वर ही मान्य शिवलिंग है. जहां लाखोंलाख लोग अकाल मौत पर विजय पाने की आस्था के साथ जाते हैं. शायद अपराधी विकास दुबे भी यहां इसी मान्यता के साथ पहुंचा था। पुराणों, महाभारत और कालिदास जैसे महाकवियों की रचनाओं में इस मंदिर का खूबसूरत वर्णन मिलता है। स्वयंभू, भव्य और दक्षिणमुखी होने के कारण महाकालेश्वर महादेव की अत्यन्त पुण्यदायी महत्ता है।
ऐसी मान्यता है कि महाकाल के दर्शन मात्र से ही मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है. महाकवि कालिदास ने मेघदूत में उज्जयिनी की चर्चा करते हुए इस मंदिर की प्रशंसा की है. मंदिर में प्रतिदिन होने वाली भस्म आरती में हजारों लोग हिस्सा लेते हैं। ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार साल 1235 में तत्कालीन शासक इल्तुत्मिश ने इस प्राचीन मंदिर का विध्वंस किया था. इसके बाद से यहां जो भी शासक रहे, उन्होंने इस मंदिर के जीर्णोद्धार और सौन्दर्यीकरण की ओर विशेष ध्यान दिया.इतिहास से पता चलता है कि उज्जैन में साल 1107 से 1728 ई. तक यवनों का शासन था। इनके शासनकाल में अवंति की लगभग 4500 वर्षों में स्थापित हिन्दुओं की प्राचीन धार्मिक परंपराएं प्राय: नष्ट हो चुकी थीं. लेकिन 1690 ई. में मराठों ने मालवा क्षेत्र में आक्रमण कर दिया। 29 नवंबर 1728 को मराठा शासकों ने मालवा क्षेत्र में अपना अधिपत्य स्थापित कर लिया।
मंदिर एक परकोटे के भीतर स्थित है. गर्भगृह तक पहुंचने के लिए एक सीढ़ीदार रास्ता है। इसके ठीक उपर एक दूसरा कक्ष है जिसमें ओंकारेश्वर शिवलिंग स्थापित है। मंदिर का क्षेत्रफल 10.77 x 10.77 वर्गमीटर और ऊंचाई 28.71 मीटर है। महाशिवरात्रि एवं श्रावण मास में हर सोमवार को इस मंदिर में अपार भीड़ होती है। मंदिर से लगा एक छोटा-सा जलस्रोत है जिसे कोटितीर्थ कहा जाता है. ऐसी मान्यता है कि इल्तुत्मिश ने जब मंदिर को तुड़वाया तो शिवलिंग को इसी कोटितीर्थ में फिंकवा दिया था। बाद में इसकी पुनर्प्रतिष्ठा कराई गई। सन 1968 के सिंहस्थ महापर्व के पूर्व मुख्य द्वार का विस्तार कर सुसज्जित कर लिया गया था. इसके अलावा निकासी के लिए एक अन्य द्वार का निर्माण भी कराया गया था। लेकिन दर्शनार्थियों की अपार भीड़ को ध्यान में रखते हुए बिड़ला उद्योग समूह ने 1980 में सिंहस्थ के पूर्व एक विशाल सभा मंडप का निर्माण कराया।
महाकाल की आराधना
मृत्युंजय महाकाल की आराधना का मृत्यु शैया पर पड़े व्यक्ति को बचाने में विशेष महत्व है। खासकर तब जब व्यक्ति अकाल मृत्यु का शिकार होने वाला हो। इस हेतु एक विशेष जाप से भगवान महाकाल का लक्षार्चन अभिषेक किया जाता है-
‘ॐ ह्रीं जूं सः भूर्भुवः स्वः,
ॐ त्र्यम्बकं स्यजा महे
सुगन्धिम्पुष्टिवर्द्धनम्।
उर्व्वारूकमिव बंधनान्नमृत्योर्म्मुक्षीयमामृतात्
ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ‘
इसी तरह सर्वव्याधि निवारण हेतु इस मंत्र का जाप किया जाता है।
ॐ मृत्युंजय महादेव त्राहिमां शरणागतम
जन्म मृत्यु जरा व्याधि पीड़ितं कर्म बंधनः
उज्जैन के महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर का इतिहास –
वर्तमान मंदिर को श्रीमान पेशवा बाजी राव और छत्रपति शाहू महाराज के जनरल श्रीमान रानाजिराव शिंदे महाराज ने 1736 में बनवाया था। इसके बाद श्रीनाथ महादजी शिंदे महाराज और श्रीमान महारानी बायजाबाई राजे शिंदे ने इसमें कई बदलाव और मरम्मत भी करवायी थी।
महाराजा श्रीमंत जयाजिराव साहेब शिंदे आलीजाह बहादुर के समय में 1886 तक, ग्वालियर रियासत के बहुत से कार्यक्रमों को इस मंदिर में ही आयोजित किया जाता था।
महाकालेश्वर मंदिर का समय – यह मंदिर सुबह 3 से रात 11 बजे तक खुला रहता है।
श्री महाकालेश्वर मंदिर के दैनिक पूजा समय सूची:-
चैत्र से आश्विन तक | कार्तिक से फाल्गुन तक |
भस्मार्ती प्रात: 4 बजे | भस्मार्ती प्रात: 4 बजे |
प्रात: आरती 7 से 7-30 तक | प्रात: आरती 7-30 से 8 तक |
महाभोग प्रात: 10 से 10-30 तक | महाभोग प्रात: 10-30 से 11 तक |
संध्या आरती 5 से 5-30 तक | संध्या आरती 5-30 से 6 तक |
आरती श्री महाकालेश्वर संध्या: 7 से 7-30 तक | आरती श्री महाकालेश्वर संध्या: 7-30 से 8 तक |
शयन आरती रात्रि 11:00 बजे | शयन आरती रात्रि 11:00 बजे |
उज्जैन के महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के बारे में रोचक बातें –
- उज्जैन के महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग को महाकाल क्यों कहा जाता है? शास्त्रों में काल के दो अर्थ होते है पहला समय और दूसरा मृत्यु। माना जाता है कि ये वही जगह है जहां पर प्राचीन समय में पूरे विश्व का समय निर्धारित किया गया था। पौराणिक कथाओं के अनुसार यहां पर राजा चंद्रसेन और गोप बालक ने भगवान शिव के शिवलिंग की स्थापना की थी।
- ताजा भस्म चढ़ाई जाती है। आपने कई मंदिरो में भस्म देखी होगी लेकन उज्जैन के महाकाल में ताजा मुर्दे के भस्म से भगवान महाकाल का श्रृंगार किया जाता है। और महाकाल की भस्म आरती में शामिल होने के लिए पहले से ही बुकिंग करानी पड़ती है।
- जूना महाकाल के दर्शन के अधूरी यात्रा – महाकाल के मंदिर में जाकर जूना महाकाल के दर्शन करना भी जरुरी माना जाता है वरना महाकाल के दर्शन अधूरे माने जाते है। कुछ कहानियों के अनुसार जूना महाकाल को मुगलों ने नष्ट करने की कोशिश की थी। मुगलों के डर से जूना महाकाल को मंदिर के पुजारियों ने दूसरे शिवलिंग से बदल दिया था।
- तीन खंडो में विभाजित है महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग – मौजूदा समय में महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के तीन खंड है जिसमें से निचले खंड कोमहाकालेश्वर, मध्य खंड को ओंकारेश्वर और ऊपरी खंड में श्री नागचन्द्रेश्वर मंदिर है। इनमें से नागचन्द्रेश्वर शिवलिंग के दर्शन साल में एक बार नागपंचमी के दिन ही किए जा सकते है।
- नंदी दीप भी है आकर्षण का केंद्र – महाकाल के गृर्भगृह में दक्षिणमुखी शिवलिंग है जो माता पार्वती, भगवान गणेश और कार्तिकेय के साथ मौजूद है यहां पर नंदी दीप भी स्थापित है जो हमेशा ही जलाता रहता है।
- उज्जैन में महाकाल ही है राजा – उज्जैन के महाकाल से जुड़ी जो अहम बात है वो ये कि यहां पर कोई शाही या राज पद पर विराजमान व्यक्ति रात नहीं गुजार सकता है। माना जाता है कि उज्जैन में विक्रमादित्य के बाद कोई भी राजा नहीं हुआ। माना जाता है कि उज्जैन में केवल एक ही राजा रह सकता है और महाकाल को यहां का राजा माना जाता है इसलिए कोई ओर राजा यहां पर नहीं ठहर सकता है। जिस वजह से राजा भोज के काल से ही यहां पर किसी राजा ने रात नहीं गुजारी है। और इसी प्रथा को आज भी राजा, मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री तक मानते है और यहां रात नहीं गुजारते है।
महाकाल मंदिर लोगों की आस्था का बहुत बड़ा प्रतीक है यही कारण है कि मान्यता कोई भी हो भक्त उसे पूरी करने पीछे नहीं हटते है। और शायद यही इस मंदिर असल खासियत है जो इसे भारत के बाकी मंदिरों से अलग बनता है।
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Souce – www.mahakaleshwar.nic.in