(Front News Today) दुनिया भर में डेढ़ करोड़ से ज़्यादा संक्रमण के मामले हैं और छह लाख लोगों की मौत हो चुकी है. इसमें से 12 लाख से ज़्यादा केस तो भारत में ही हैं. ज़ाहिर है, सबकी निगाहें कोरोना वायरस की वैक्सीन पर हैं जिसे भारत समेत कई देश बनाने की कोशिश में हैं. दर्जनों क्लीनिकल ट्रायल हो रहे हैं और कुछ देशों में ये ट्रायल दूसरे फ़ेज़ में पहुँच भी चुके हैं.
काफ़ी को उम्मीद है कि साल के अंत तक एक वैक्सीन तैयार हो सकती है. लेकिन अगर ये वैक्सीन बन भी गई तो दुनिया के हर कोने तक पहुँच कैसे सकेगी? कोरोना वायरस के क़हर ने अमीर-ग़रीब, कमज़ोर-ताक़तवर, सभी के मन में डर और संशय पैदा कर रखा है. ‘वैक्सीन नैशनलिस्म’ ने डर और आशंकाओं को बढ़ावा दिया है.

सवाल ये भी है कि वैक्सीन ईजाद करनेवाले का उस पर कितना नियंत्रण होगा? ग्लोबल इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट (वैश्विक बौद्धिक संपदा अधिकार) के तहत वैक्सीन बनानेवाले को 14 साल तक डिज़ाइन और 20 साल तक पेटेंट का अधिकार मिलता है.

लेकिन इस अप्रत्याशित महामारी के प्रकोप को देखते हुए सरकारें “अनिवार्य लाइसेंसिंग” का ज़रिया भी अपना रही हैं ताकि कोई थर्ड-पार्टी इसे बना सके. यानी कोरोना महामारी से जूझ रहे किसी देश की सरकार कुछ दवा कंपनियों को इसकी निर्माण की इजाज़त दे सकती हैं.

वैक्सीन के इंतज़ार के बीच ये साफ़ होता जा रहा है कि महज़ वैक्सीन बन जाने से लोगों की मुश्किलें रातों-रात ख़त्म नहीं होंगी. आम लोगों तक इसे पहुंचाने की एक लंबी और जटिल प्रक्रिया होती है.प्रोफ़ेसर एनके गांगुली कहते हैं, “अगर आज मेरे पास वैक्सीन हो तो मैं बहुत डर जाऊँगा और मेरी रातों की नींद उड़ जाएगी. भारत में वैक्सीन को सभी तक पहुँचाने में हमेशा समय लगा है. हमारे यहाँ संघीय प्रणाली है और सभी राज्यों की ज़रूरत होगी. अब जिन राज्यों और लोगों को पहले वैक्सीन नहीं मिलेगी उनके बीच सामाजिक मनमुटाव भी हो सकता है”.
भारत सरकार के नीति आयोग में सदस्य(स्वास्थ्य) वीके पॉल ने भी इस हफ़्ते वैक्सीन पर बात करते हुआ कहा कि, “इस बात पर चर्चा शुरू हो गई है कि जरूरतमंदों को कोविड वैक्सीन कैसे मुहैया कराई जाएगी”.

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