Front News Today: फरवरी में हुए दिल्ली दंगों में अब जांच एजेंसियों ने कई लोगों का नाम इसमें शामिल है, उन्हीं नामों में से एक जेएनयू के पूर्व छात्र उमर खालिद को यूएपीए के कहा था उसके घर से गिरफ्तार कर लिया गया आइए हम जानते हैं यूएपीए क्या होता है, और किस व्यक्ति पर यह लगाया जाता है।

पहले हम यह जानते हैं कि यह एक्ट क्यों लाया गया?
ऐसा कोई अपराध जिसका आईपीसी में जिक्र नहीं था, इसलिए अनीस 1967 में यह कानून लाया गया
इसमें जैसे आतंकवाद से जुड़ी गतिविधियां, और इसमें शामिल लोग, तथा आतंकवादी संगठन क्या है और कौन है इस एक्ट में परिभाषित किया गया है,वही जम्मू और कश्मीर में भी यह एक्ट लागू है, पहले यहां आईपीसी की जगह रवि रणवीर पीनल एक्ट लागू था। परंतु यूएपीए पूरे भारत में लागू है,
वहीं इससे एक्ट के 15 के अनुसार, भारत की एकता, अखंडता, आर्थिक सुरक्षा ,सुरक्षा या भारत के संप्रभुता को संकट में डालने या फिर संकट में डालने का इरादा से भारत या भारत के बाहर आतंक फैलाने का आतंक फैलाने के इरादे से किया गया कार्य अतंकवादी कृत्य है। इसमें बम धमाकों से लेकर जाली नोटों के कारोबार तक शामिल भी है।
वही इस एक्ट के सेक्शन 35 के अनुसार सरकार को यह शक्ति दिया गया है कि किसी व्यक्ति या संगठन को मुकदमे से पहले आतंकवादी करार दे शक्ति है।
वही यूएपीए कानून से जुड़े एक विशेषज्ञ का कहना है कि यह सरकार पर निर्भर करता है कि किसी व्यक्ति या संगठन को आतंकवादी करार दे सकती है या नहीं भी, उन्हें केवल अनलॉफुल ट्रबानाल के सामने इस फैसले को वाजिब ठहराना होता है। इसी अगस्त में हुए विवादास्पद बदलाव से पहले इसमें 5 बार संशोधन भी किया जा चुका है।
वहीं राज्यसभा में यूएपीए संशोधन बिल पर बहस के दौरान इसमें विरोध और समर्थन में कई दलीलें दी गई थी, और इसमें कहा गया कि यह कानून संविधान में संघीय ढांचे का उल्लंघन करता है, एनआईए को किसी भी राज्य में जाकरकरने के छूट मिल जाएगी। तथा इसमें केंद्र और राज्य सरकार के पुलिस के बीच टकराव की संभावना भी जताई गई थी।
वही इस बिल के समर्थन में सरकार का दलील यह था कि आतंकवादी आतंक फैला कर भाग जाते हैं इसलिए यह कानून में संशोधन जरूरी था।
राज्यसभा में अमित शाह ने कहा कि राज्य सरकार और एनआईए दोनों ही इस कानून का इस्तेमाल करती है, तथा एनआईए ने करीब 2,000 से अधिक मामले दर्ज किए हैं, इनमें से कई मामलों में सजा भी दी गई है, अमित शाह ने कहा कि जो मामले दर्ज करता है वह काफी जटिल किस्म के होते हैं इसमें सबूत मिलने की संभावना बहुत कम रहती है।
इसके पहले भी इस तरह के कानून बनाए गए थे जो पोटा और टाडा नाम से जाना जाता है। जो काफी विवादास्पद कानून रहा,
वही पोटा कानून के तहत किसी भी व्यक्ति को 180 दिनों तक हिरासत में रखने का प्रावधान था,इसमें यह सुनिश्चित करने का प्रयास किया गया कि कोई भी व्यक्ति जो आतंकवाद में संलिप्त है उससे जानकारी प्राप्त करने का प्रयास किया जाएगा और दबाव डाला जाता , इसमें कई बड़े लोगों को गिरफ्तार भी किया गया।
वही टाडा कानून में आतंकवादी परिभाषा के साथ-साथ इसमें विध्वंसक कार्य को भी परिभाषित किया गया है, इसमें उकसाना, पैरवी करना और सलाह देना भी जुर्म था, पुलिस के सामने दिया गया इकबालिया बयान भी वैध माना गया। हालांकि जो भी कानून बने वह कानून विवादों से गहरा नाता रहा है, और सवाल भी उठा है।

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