बिहार (Front News Today) अभय ने कहा कि नेपोटिज़म हर देश में है लेकिन भारत में इसने एक अलग रूप ले लिया है.
वो कहते हैं, “मुझे लगता है कि बाक़ी दुनिया के मुक़ाबले भारत में जाति की भूमिका कहीं ज़्यादा बड़ी है. आख़िरकार ‘जाति’ ही यह तय करती है कि बेटा अपने पिता का काम संभालेगा और बेटी शादी करके गृहणी बनेगी. अगर हम वाक़ई बदलाव लाना चाहते हैं, सुधार करना चाहते हैं तो किसी एक इंडस्ट्री पर फ़ोकस करने और बाक़ियों को नज़रअंदाज़ करने से ये नहीं होने वाला. आख़िर हमारे फ़िल्मकार, नेता और कारोबारी कहां से आते हैं? वो हमारे जैसे लोग ही हैं. वो उसी व्यवस्था में पलते-बढ़ते हैं जिनमें बाक़ी सब. वो हमारी संस्कृति की ही परछाई हैं.”
अभय देओल कहते हैं कि प्रतिभा चाहे किसी भी क्षेत्र में हो, वो चमकने के एक मौक़े की काबिल ज़रूर होती है.
वो लिखते हैं, “जैसा कि पिछले कुछ हफ़्तों में हमने सीखा है, किसी कलाकार को कामयाबी से ऊपर उठाने या नाकामायबी से नीचे गिराने के कई ज़रिए होते हैं. मैं बहुत ख़ुश हूं कि आज ज़्यादा से ज़्यादा कलाकार खुलकर सामने आ रहे हैं और अपने अनुभवों के बारे में बात कर रहे हैं. मैं पिछले काफ़ी वर्षों से इन सबके बारे में बोलता रहा हूं लेकिन अकेले मैं सिर्फ़ वही कर सकता था. अकेले बोलने वाले कलाकार को निशाना बनाना आसान है और मुझे कई मौक़ों पर इसका ख़ामियाजा भुगतना पड़ा है. लेकिन एक समूह के तौर, किसी को चुप कराना मुश्किल होता है. शायद ये हमारा वक़्त है.”