(Front News Today) 
कारगिल दिवस पर विशेष
‘’मैं देश हूं’’
ठहराव नहीं मैं धारा हूं,
मस्त मगन जो बहती है,
राह में जो भी मिले हमें,
संग लिए चलो ये कहती है ।

एक सूत्र में बंधा ये देश,
खंडित ना हो पाएगा,
नापाक इरादों वाला खुद,
खंडित-खंडित हो जाएगा ।

गंगा-जमुनी की धरती है,
सर्वधर्म सद्भाव का देश,
बख्शेंगे नहीं उसको हम,
जो फैलाएंगे देश में द्वेश,

ये धरती है उन वीरों की,
जो झुकते नहीं झुकाते हैं,
नेस्तनाबूत हो जाते वो,
जो हमकों आंख दिखाते हैं।

हम संन्यासी, हम साधु हैं,
रग-रग में अपने देशभक्ति,
फूलों के जैसे कोमल हैं,
तो चट्टानों से भी हैं सख्त ।

हम मानवता के रक्षक हैं,
विश्व शांति है अपना मूल,
लेकिन कमजोर नहीं है हम,
दुश्मन को चटा देते हैं धूल ।

शून्य से शुरू किया सफर,
दुनिया को याद दिलाते हैं,
युद्ध नहीं है अंतिम सच,
हम बार बार दोहराते हैं।

तुम एटम-एटम कहते हो,
हम बम-बम भोले कहते हैं,
तुम हथियारों से लड़ते हो,
हम कुविचारों से लड़ते हैं।

अपनी झोली में क्षमादान,
लेकर हाथों में टहलते हैं
वो बंदूकों को हाथ लिए,
फिर भी वो हमसे डरते हैं।

हम बुद्ध हैं हम नानक हैं,
हम संत कबीर हैं महावीर,
लेकिन जब जंग करोगे तो,
ना छोड़ेंगे, तुम्हें देंगे चीर ।

हम नेहरू हैं हम गांधी हैं.
हैं पटेल सरीखे लौहपुरुष,
बस देश बढ़े और बढ़ता रहे,
इससे हमें मिलता आत्मसुख ।।

समृद्धि उपाध्याय

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