(Front News Today) फ्रंट न्यूज़ टुडे के लिए रूद्र प्रकाश की खास रिपोर्ट!आइये हम एक समसामयिक विषय “बेरुत में धमाके” पर प्रकाश डालते हैं! लेबनान की राजधानी बेरुत के समुद्र तट पर मंगलवार को हुए 2750 टन के अमोनियम नाइट्रेट के भंडार में भीषण धमाके ने लेबनान को हिला कर रख दिया। धमाके इतने जोरदार थे कि इसकी आवाज पड़ोसी देशों तक सुनाई दिया। धमाके से 135 से अधिक लोगों को जान गंवानी पड़ी है। हजारों की संख्या में लोग घायल हो गए। बेरुत की सड़के जमीनदोज हो गई, इमारतें जमींदोज हो गई और बड़ी संख्या में लोग बेघर हो गए। देश का आधा अनाज भंडार बर्बाद हो गया जिससे भुखमरी की समस्या उत्पन्न हो गई है। यहां पर पहले से ही महंगाई चरम सीमा पर है और इस धमाके ने और समस्याएं खड़ी कर दी हैं। देश पहले से ही आतंकवाद, आर्थिक बदहाली और कोरोनावायरस से लड़ रहा है। वस्तुतः इस धमाके ने इस देश की नींव हिला कर रख दिया है। सन 1975 से 1990 के दौरान गृह युद्ध झेल चुका यह देश इस समय विनाश के कगार पर पहुंच गया है।
सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर इस देश में इतनी बड़ी मात्रा में अमोनियम नाइट्रेट आया कहां से? तो बताते चलें कि लगभग 6 साल पहले एक मालवाहक जहाज बरामद किया गया था। बताया जाता है कि रूस का यह जहाज जार्जिया से मोजाम्बिक जा रहा था लेकिन इसके मालिकों ने इसे यहाँ लावारिस छोड़ दिया। तबसे यह खतरनाक रसायन बेरुत के बंदरगाह के नजदीक के गोदाम में रखा गया था। इस दौरान 6 वर्षों में सरकार बदली। अदालत व स्थानीय लोगों ने इस भंडार को लेकर चिंता भी जताई पर किसी ने इस ओर ध्यान नहीं दिया। अराजकता ने लेबनान की कमर तोड़ दी है और यह देश महंगाई, बिजली संकट, रोजगार को लेकर पहले से ही मोर्चा ले रहा है। अक्सर यहां लोग इन मूल मुद्दों को लेकर सड़क पर उतरते है। विडंबना यह भी है कि यह देश ईरान और सऊदी अरब के बीच अखाड़ा बना हुआ है, जिनको इस देश को लेकर अपना स्वार्थ है। एक और बात सामने आई है कि लेबनान के दिवंगत सुन्नी प्रधानमंत्री रफीक अल हरीरी के मामले में शुक्रवार को फैसले आने थे। इसके पहले ही धमाके हुए हैं जो हैरान करने वाले हैं। इधर अमेरिकी राष्ट्रपति ने इसे हादसे के बजाय हमला बताया है। अलबत्ता फ्रांस सहित अन्य यूरोपीय संघ के देशों ने लेबनान को इस मुश्किल घड़ी में मदद के लिए हाथ बढ़ाया है
इस हादसे व त्रासदी को देखते हुए यह आवश्यक हो जाता है कि इसभीषण हादसे की अंतरराष्ट्रीय निगरानी में जांच हो !वास्तव में यह धमाका सबके लिए सबक है! इतनी भारी मात्रा में विस्फोटक एक जगह रखना, वह भी बिना किसी सुरक्षा के कितना खतरनाक हो सकता है इस घटना ने यह दिखाया है। विशेषज्ञों का कहना है कि करीब 75 साल पहले 6 अगस्त 1945 को हिरोशिमा में गिराए गए परमाणु बम के 10 फ़ीसदी के बराबर यह विस्फोटक था। वस्तुतः लेबनान को इस समय मदद की जरूरत है। आपसी मतभेद को भुलाकर संपूर्ण विश्व को इसकी मदद करना होगा। इस देश को मदद करना होगा। बेरुत में हुए इस धमाके में मृतकों को हम श्रद्धांजलि देते हैं। हम गहरी संवेदना प्रकट करते हैं और प्रार्थना करते हैं की भगवान उनकी आत्मा को शांति दें!

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