(Front News Today / डॉ. राकेश प्रकाश) हिमाचल की पहाड़ियों में अनगिनत ऐसी कहानियों का भंडार छुपा है, जिसे कोई चमत्कार कहता है तो कोई कुदरत का करिश्मा। इसी कड़ी में एक नया नाम है उस झील का, जिसकी पानी की गहराई से भी ज्यादा गहरे इससे जुड़े रहस्यों की अनसुलझी गुत्थी है। हर रहस्य अपने आप में चौंकाने वाला है। रहस्य भी ऐसा, जिसका कोई ओर-अंत नहीं। कहते हैं कि इस रहस्यमयी झील में छुपा है अरबों की संपत्ति का वो खजाना, जिसका राज़, आज तक कोई बेपर्दा नहीं कर सका।

ये झील है दिल्ली से 500 किलोमीटर दूर हिमाचल प्रदेश के एक दूर दराज़ के इलाके में। दिल्ली से मनाली के रास्ते में मंडी तक 10 घंटे का सफर और वहां से 3 घंटे का बेहद मुश्किल रास्ता। तीन घंटे के इस मुश्किल सफर के बाद सामने आता है वो कस्बा, जिसकी हर तस्वीर में कोई न कोई रहस्य छिपा है और उस कस्बे का नाम है रोहांडा। रोहांडा पहुंच कर लगा कि मानों अब हम मंजिल पर ही पहुंच गए हैं। लगा कि मंजिल यहां से दिख रहे सामने उस पहाड़ की चोटी पर ही है। लेकिन पहाड़ की चोटी तक 9 किलो मीटर  की लंबी ट्रैकिंग, सीधी चढ़ाई, यहां से ये एहसास शुरू हुआ कि असली सफर तो अब शुरु हुआ है।

कच्चा, संकरा, पथरीला और बेहद खतरनाक रास्ता। हर कदम मानो जोखिम को दावत दे रहा है और एक भी ग़लत कदम का अंजाम भारी हो सकता है। रास्ते में कुछ स्थानीय लोगों से मुलाकात हुई तो कई ऐसी बातों का पता चला जो सदियों से यहां के लोगों को तो पता थीं पर यहां से बाहर कभी नहीं निकली। इस पूरे इलाके का संबंध रामायण काल, महाभारत के युद्ध और पांडवों से है। इसके प्रमाण हमें रास्ते में दिखने भी लगे। ये रास्ते में पड़े अलग-अलग तरीके के लाल निशान इसी सबूत की शुरुआत थी।

हमें पता चला कि आगे रहस्यों की ऐसी पूरी दुनिया मौजूद है और उसी दुनिया को देखनी की चाहत हमारी थकावट को उत्साह में बदल दे रही थी। करीब एक घंटे और चढ़ने के बाद ओक और देवदार के घने जंगल ने हमारा स्वागत किया। इसी जंगल के बीच एक च़ट्टान हमें दिखी। विशाल चट्टान के नीचे एक लंबा नोक दार इंसान की जीभ जैसा बड़ा पत्थर था। इसे देखकर अहसास हुआ कि ये तो रहस्यमयी दुनिया के शुरुआती निशान है।

हमारी मंज़िल अभी आगे थी और वो मंजिल थी पहाड़ की चोटी के ठीक उपर एक बना एक मंदिर और उस मंदिर में एक बड़े खजाने का रहस्य। लेकिन वहां तक तक पहुंचने से पहले एक और रहस्य हमारा इंतजार कर रहा था। इस बार मामला रामायण के दौर से जुड़ा था। सामने था एक पेड़ और उस पर लटक रही इंसान के बालों जैसी बेल।

हमारे साथ चल रहे स्थानीय निवासी पिलखू राम चौहान ने इस बेल की जो कहानी बताई वो बेहद हैरान करने वाली थी। 

यहां आकर मैंने महसूस किया कि भूगोल का रिश्ता इतिहास या लोक कथाओं से कितना गहरा होता है। पहाड़, पेड़, चट्टान और कुल मिलाकर किसी जगह की आबो-हवा सिर्फ किताबी नहीं होती, ये सारी चीजें अपने आप में जीती जागती कहानियां होती हैं। हम कुछ ही दूर बढ़े होंगे कि एक खास किस्म के फूल को देखकर ठिठक गए। फूलों का ऐसा रंग-रूप पहले कभी नहीं दिखा था। एक दम जहरीले सांपों के जैसी।

धीर-धीरे हमारी मंजिल अब पास आती जा रही थी और सामने आने वाला था देव कमरुनाग का मंदिर, जिसमें छिपा है खजाने का रहस्य। लेकिन उसके पहले एक और रहस्य था जिसे हमने यहां आकर जाना। दरअसल इस जगह को लेकर कई कहानियां है। इस मंदिर के ऊपर से कोई हवाई जहाज नहीं उड़ सकता। जिन दो हवाई जहाजों ने मंदिर की छत पार करने की कोशिश की, वो अगले ही पल हादसे का शिकार होकर जमींदोज हो गए।

लोगों की मान्यता है कि इस मंदिर को न तो कोई जहाज पार कर सकता है और न ही कोई पक्षी। दो हादसों के बाद सरकार ने अब इस जगह हवाई उड़ान पर रोक लगा दी है। ये मंदिर हज़ारो साल पुराना देव कमरूनाग का मंदिर है। 10 हज़ार फीट की ऊचाई पर बना ये मंदिर अपने आप में कई राज़ समेटे हुए है। लकड़ी के बने इस मंदिर में छत तो है लेकिन दीवारें नहीं।

कमरूनाग मंदिर में ही हमें पता चला कि, जिस खजाने को हम खोज रहे हैं बस वो यहीं कहीं है। हम देव कमरुनाग मंदिर की चोटी पर खड़े थे औऱ ढूंढ रहे थे कि आखिर चारों तरफ पेड़ों से घिरा मंदिर, बड़ा सा मैदान और एक बड़ी सी झील, लेकिन यहां खज़ाना कहां है। यहां तो चारों ओर शांति और खूबसूरती नजर आ रही है, जो खज़ाना नजर आ रहा है वो है प्रकृति के सौंदर्य का खजाना, तो फिर वो खजाना कहां है जिसकी तलाश में हम यहां तक आए थे। 

अब हमारी नजरें खोज रही थी वो झील, जिसमें पानी नहीं सोना बहता है। जिस झील की गहराई में मछलियों की जगह रहस्यमयी हीरे और जवाहरात तैरते हैं। स्थानीय लोगों की माने तो झील में वाकई में बड़ा खजाना छुपा है। झील में पड़े खजाने की खोज में यहां तक हम पहुंचे थे। लेकिन अभी तक सिर्फ कहानियां ही मिली थी और स्थानीय लोगों के मुंह से सुनी-सुनाई बातें। लेकिन अब वो खज़ानों वाली झील हमारे बिल्कुल सामने थी। ऐसा कहा जाता है इसी झील में 1000 टन से भी ज्यादा सोना, हजारों करोड़ के हीरे-जवाहरात और दूसरे कई तरह के रत्न यहां दबे हैं।

लोगों की माने तो झील में पानी की जगह सोना बहता है। मछलियों की जगह हीरे-जवाहरात तैरते हैं। लेकिन मंदिर के सामने इस झील में ये इतना सोने का खजाना आता कहां से हैं। 

यहां के लोगों की बात सुनकर हम भी चौंक पड़े। ये खजाना किसी राजे-रजवाड़े का नहीं है। कोई सरकारी खजाना भी नहीं है। ये खजाना तो यहां आने वाले लोगों की आस्था और भक्ति की बदौलत बना है। हर साल करोड़ों का सोना झील में डाला जाता है। कई लोग तो ऐसे भी हैं जो अपने पूरे गहने और हीरे-जवाहरात तक झील में डाल देते हैं। सदियों से ये परंपरा यूं ही चली आ रही है।  

आखिर ये कौन सी आस्था है और कैसी परंपरा है, जिसमें लोग अपनी खून-पसीने की कमाई से जमा की गई दौलत पानी में फेंक देते हैं। क्या ये सिर्फ आस्था या भक्ति से जुड़ा मामला है या फिर कुछ और? झील में हर साल आने वाले ये सोने-चांदी के गहने और हीरे-जवाहरातों का होता क्या है? कहां जाता है ये बड़ा खजाना? इन सारे सवालों के जवाब भी हमें यहीं मिल गए।
दरअसल, हर साल 14 जून को कमरुनाग के मंदिर में मेला लगता है। एक हफ्ते तक चलने वाले मेले में देश-विदेश से श्रद्धालु आस्था और भक्ति की गठरी लिए दूर-दूर से यहां खींचे चले आते हैं। मत्था टेकते हैं, मन्नतें मांगते हैं और मन्नत पूरी होने के बाद कमरुनाग को चढ़ावा चढ़ाते हैं। इसमें न सिर्फ गहने बल्कि कैश और करेंसी नोट भी होते हैं।

मेला खत्म होने के बाद इन नोटों को झील से निकालकर सुखाया जाता है। गिनती की जाती है और फिर बाजार से उतने ही रकम की सोना-चांदी खरीद कर वापस झील में डाल दिया जाता है। ऐसी मान्यता है कि कमरुनाग मंदिर के सामने इस झील में पड़ी एक-एक चीज पर देव कमरुनाग का हक है। यहां चढ़ाए गए पैसों का कोई और इस्तेमाल नहीं हो सकता है। 

यहां शिमला से भी एक परिवार आया है, जिसके आंगन में अब बच्चों की किलकारी गूंजने लगी है। बाबा कमरुनाग ने गोद भरी इसलिए गहने दान करने इस झील में आया है। मन्नतें पूरी होने के बाद कमरूनाग झील में सोना-चांदी चढ़ाने की ये परंपरा सदियों से पीढ़ी दर पीढ़ी यूं ही चली आ रही है। ऐसे अनगिनत श्रद्धालु है, जो मन्नतें पूरी होने के बाद यहां झील में सोना दान करने आते हैं।  

मान्यता है कि कमरुनाग के इस मंदिर से कोई भी खाली हाथ नहीं लौटता। हर किसी की मुरादें पूरी करते हैं बाबा कमरुनाग। हर साल लाखों लोग अपनी मन्नत पूरी होने पर सोने-चांदी के गहने, नकद पैसे और हीरे-जवाहरात झील में चढ़ाते हैं। सदियों से ऐसा होता आया है, लेकिन अब भी झील पूरी तरह भरी नहीं है। जिससे हमारे मन में कई सवाल उठने लगे थे। मसलन इस झील की गहराई क्या है? दूसरा आखिर इस झील में आने वाला खजाना जाता कहां है? क्या कभी इस खजाने को निकालने की कोशिश नहीं की गई। 
हमें पता चला, ऐसी कोशिश एक बार नहीं कई बार हो चुकी है। कुछ दिन पहले तो झील में छेद भी कर दिया था। दरअसल कमरुनाग झील में हज़ारों-करोड़ का खजाना है। ये सबको पता है सरकार को, पुलिस को और चोरों को भी। हालांकि हिमाचल प्रदेश में कमरुनाग के लिए गहरी आस्था है। खजाने की चोरी तो छोड़िए, खजाने को छूने की सोचने तक से डरते हैं लोग। 

स्थानीय पत्रकार बीरबल शर्मा के अनुसार आस्था और मान्यताओं के बीच राज्य सरकार ने भी खजाने की सुरक्षा को लेकर कई इंतजाम किए हैं … लेकिन देव कमरुनाग में आस्था रखने वाले कहते हैं कि कमरुनाग के खजाने को किसी हिफाज़त जरूरत नही … खुद देव कमरूनाग खजाने की हिफाज़त करते हैं । इतनी गहरी आस्था और सुरक्षा के इंतजामों के बावजूद स्थानीय निवासी देश चंद जी से ये सुनते ही हमें तगड़ा झटका लगा कि खजाने को हथियाने की या चुराने की कई बार कोशिश हो चुकी है। कभी झील में कूदकर तो कभी जाल डालकर चोरों ने खजाने पर हाथ साफ करने की हर मुमकिन कोशिश की।

कमरूनाग मंदिर के पुजारी ठाकुर दास ने बताया कि खजाना हासिल करने के लिए कुछ दिन पहले ही चोरों ने एक औऱ कोशिश की। फूलप्रूफ प्लान बनाया। ऐसा प्लान जिसकी कल्पना भी मुमकिन नहीं है। अथाह गहराई वाली झील से खजाने गायब करने के लिए चोरों ने पहले झील का पानी गायब करने का प्लान बनाया। झील में छेद कर दिया, ताकि पानी निकल जाए और खजाना हाथ लगे।

जिस रफ्तार से झील का पानी निकल रहा था, लगा झील 10 दिन में पूरी तरह खाली हो जाएगी, लेकिन न तो झील का पानी खत्म हुआ और न ही उसकी गहराई का पता चल पाया। चोरों का मंसूबा धरा का धरा रह गया। हर बार की तरह इस बार भी चोरों को नाकामी ही हाथ लगी।

देव कमरुनाग की मान्यता और आस्था हिमाचल में ही नहीं बल्कि हिन्दुस्तान के बाहर भी है। कमरुनाग मंदिर हिमाचल की हसीन वादियों में छिपा एक अनमोल रत्न है और एक रहस्य भी। कमरुनाग झील में हज़ारों-करोड़ का खजाना है, ये सबको पता है सरकार को, पुलिस को और चोरो को भी। हालांकि हिमाचल प्रदेश में कमरुनाग के लिए गहरी आस्था है, खजाने की चोरी तो छोड़िए, खजाने को छूने की सोचने तक से डरते हैं लोग। लोगों की माने तो ऐसा करना महापाप के बराबर है। 

स्थानीय निवासी पिलखू राम, जिनकी उम्र करीब 60 साल है, इनके मुताबिक आस्था और मान्यताओं के बीच राज्य सरकार ने भी खजाने की सुरक्षा को लेकर कई इंतजाम किए हैं। लेकिन देव कमरुनाग मंदिर के पुजारी में आस्था रखने वाले कहते हैं कि कमरुनाग के खजाने को किसी हिफाज़त जरूरत नहीं खुद देव कमरूनाग खजाने की हिफाज़त करते हैं। 

इतनी गहरी आस्था और सुरक्षा के इंतजामों के बावजूद ये सुनते ही हमें तगड़ा झटका लगा कि खजाने को हथियाने की या चुराने की कई बार कोशिशें हो चुकी है। कभी झील में कूदकर तो कभी जाल डालकर चोरों ने खजाने पर हाथ साफ करने की हर मुमकिन कोशिश की। 
खजाना हासिल करने के लिए कुछ साल पहले ही चोरों ने एक औऱ कोशिश की। फूलप्रूफ प्लान बनाया। ऐसा प्लान जिसकी कल्पना भी मुमकिन नहीं है। 

 अथाह गहराई वाली झील से खजाने को गायब करने के लिए चोरों ने पहले झील का पानी गायब करने का प्लान बनाया। झील में छेद कर दिया, ताकि पानी निकल जाए और खजाना हाथ लग जाए। जिस रफ्तार से झील का पानी निकल रहा था, लगा झील 10 दिन में पूरी तरह खाली हो जाएगी। लेकिन न तो झील का पानी खत्म हुआ और न ही उसकी गहराई का पता चल पाया। चोरों का मंसूबा धरा का धरा रह गया। हर बार की तरह इस बार भी चोरों को नाकामी ही हाथ लगी।

आप भी आस्था के अनूठे ठिकाने पर मन की शांति और भगवान के आशीर्वाद की प्राप्ति के लिए आ सकते हैं। वैसे भी हिमाचल की खूबसूरती देखने के लिए हर साल देश-विदेश से लाखों की संख्या में सैलानी यहां आते रहते हैं। साथ ही उम्मीद और आशा के साथ आने वाले लोगों को बाबा कमरूनाग कभी निराश नहीं करते।

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