सूरजकुंड, (फरीदाबाद), 04 अप्रैल। 35वें सूरजकुंड अंतरराष्टï्रीय हस्तशिल्प मेला-2022 में महाराष्टï्र के मुम्बई से आए श्रृद्धा सतविडकर की गु्रप लावनी ने यारावजी व गाडी यानावीबुरकयाजी गाकर सुंदर प्रस्तुति देकर पर्यटकों को झूमने पर मजबूर कर दिया। यह लावनी राजा महाराजाओं के दरबार में उस समय जब दूसरे देश का राजा दरबार में आते थे, तब उस अतिथि राजा के सम्मान में उनके मनोरंजन के लिए मुजरा, नृत्य, लावनी, गायन किया जाता था। लावनी एक श्रृंगारी लोक कला है। पुराने समय में रात्रि के समय अपने राजा को आनंद विभोर करने व विश्राम दिलाने के लिए लावनी, गाई व नृत्य किया जाता था। लावनी एक नृतय कला है। लावनी लावण्य से बनी हुई है। इसका सात्विक शब्द सुंदरता है। मुख्य ढोलक की ताल ओर घूंघरू नृत्य करने वाले के पैरों का आपस में तालमेल होता है। लावनी के नौ प्रकार जैसे-श्रृंगारिक लावनी, खड़ी लावनी, बैठकी लावनी, मुजरा, तमाशा इत्यादि होते हैं। इसके मुख्य वाद्ययंत्र हारमोनियम पर अक्षय, ढोलकी पर पाण्डुरंग सुतार, पैड पर शैलेश, गायन श्रृद्धा सतविडकर, नृत्की चैतन्या, पल्लवी, पूजा, प्रिती, प्रतिमा, नीभा, शालिनी, पूजा, प्रिती लोखंडे, श्रृद्धा, मंदार, राहुल आदि 15 कलाकारों ने सुंदर प्रस्तुति दी।इसके अलावा मुख्य चौपाल पर झारखंड, इस्वातिनि, उड़ीसा, सैंगल, पंजाब, तंजानिया, उत्तर प्रदेश, घाना, हरियाणा, महाराष्टï्र, इक्वाटोरियल ग्वेनिया, ग्वाइने बिस्सु आदि से आए विभिन्न कलाकारों ने अपने-अपने देश-प्रदेश की पौराणिक कथाओं पर आधारित खुशहाली की प्रतीक अपनी लोक कला के माध्यम से गीत-संगीत व नृत्य की प्रस्तुतियां पेश की।

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