· स्थापित ग्लोबल स्टैंडर्ड के अनुसार, अगर लिवर ट्रांसप्लांट अगर समय पर किया जाए तो उसकी सफलता दर लगभग 95 प्रतिशत है

· टीम को 1500 से अधिक सफल लिवर ट्रांसप्लांट करने का बड़ा अनुभव है

· मरीजों का ब्लडलेस तकनीक से ऑपरेशन किया गया

फ़रीदाबाद: गुरुवार, 7 मार्च 2024: मैरिंगो एशिया हॉस्पिटल्स फ़रीदाबाद ने 10 और 11 साल की दो छोटी लड़कियों का ब्लडलेस लिवर ट्रांसप्लांट करने में मिली सफलता का जश्न मनाकर महिला दिवस (8 मार्च) मनाया। इस अवसर पर मरीजों को सर्जरी से पहले और बाद के अपने अनुभव साँझा करने के लिए बुलाया गया। टीम का नेतृत्व लिवर ट्रांसप्लांट विभाग के डायरेक्टर एवं एचओडी डॉ. पुनीत सिंगला ने किया। इस दौरान एनेस्थेटिस्ट एवं आईसीयू केयर के डायरेक्टर डॉ. ऋषभ जैन और सर्जरी, एनेस्थीसिया और आईसीयू की टीम के अन्य सदस्य का भी विशेष योगदान रहा।

लिवर हमारे शरीर के सबसे बड़े अंगों में से एक है और यह पाचन, इम्युनिटी और मेटाबॉलिज्म (भोजन को एनर्जी में बदलने की प्रक्रिया)को बनाए रखने, ब्लड को फिल्टर करने और विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने और शरीर में विटामिन, मिनरल्स एवं पोषक तत्वों की मात्रा बनाए रखने जैसे कुछ सबसे महत्वपूर्ण कार्य करता है। इससे शरीर को विभिन्न कार्यों और गतिविधियों को करने के लिए ऊर्जा मिलती है। लिवर फेलियर के अंतिम स्टेज में मरीज को लिवर ट्रांसप्लांट की आवश्यकता होती है। यह समस्या खराब जीवनशैली, संक्रमण और लिवर बीमारियों के कारण हो सकती है।

11 वर्षीय लैचिन को विल्सन नामक बीमारी थी। उसे गंभीर पीलिया और हेपेटिक एन्सेफैलोपैथी (लिवर की बीमारी के कारण मस्तिष्क की कार्यक्षमता में गिरावट आना) थी और उसे बेहोशी की हालत में फूले हुए पेट के साथ इमरजेंसी में एडमिट किया गया था। पूरी तरह से जांच के बाद, डॉक्टर ने इमरजेंसी ट्रांसप्लांट की सलाह दी और इमरजेंसी के आधार पर बच्ची को सर्जरी के लिए ले जाया गया। सर्जिकल प्रक्रिया टीम के लिए बहुत जटिल और चुनौतीपूर्ण थी जिसमें लगभग 12 घंटे का समय लगा। “ब्लडलेस” तकनीक की मदद से सर्जिकल टीम महत्वपूर्ण जोखिमों पर काबू पाने में सफल रही और डोनर को एक सप्ताह के बाद छुट्टी दे दी गई और बच्ची को 3 सप्ताह के बाद हॉस्पिटल से डिस्चार्ज कर दिया।

विल्सन रोग को हेपेटोलेंटिक्यूलर डिजनरेशन के रूप में भी जाना जाता है। यह एक दुर्लभ आनुवंशिक विकार है जो शरीर के विभिन्न अंगों, विशेष रूप से लिवर और ब्रेन में कॉपर बढ़ जाने से होता है। विल्सन बीमारी से ग्रस्त लोगों में खराब प्रोटीन शरीर की अतिरिक्त कॉपर को बाहर निकालने की क्षमता को खराब कर देती है जिससे यह लिवर में जमा हो जाता है और बाद में ब्लडस्ट्रीम में चला जाता है।

दूसरी मरीज किर्गिस्तान से 10 वर्षीय लड़की अरुउज़ातिम थी जिसे ऑटोइम्यून डिसऑर्डर की समस्या थी। यह बच्ची बिगड़ी हुई लिवर डिजीज के साथ कम प्लेटलेट काउंट और नाक से बार-बार ब्लीडिंग की समस्या के साथ आई थी। सभी मूल्यांकन और कानूनी औपचारिकताओं के बाद, मरीज को ट्रांसप्लांट सर्जरी के लिए ले जाया गया। पिता को एक सप्ताह के बाद छुट्टी दे दी गई और बच्ची ने तेजी से रिकवरी की और 3 सप्ताह के बाद उसे छुट्टी हॉस्पिटल से डिस्चार्ज कर दिया गया। दोनों केस में क्रमशः बच्चे का पिता डोनर था।

ऑटोइम्यून लिवर रोग ऐसी बीमारियों का एक ग्रुप है जिसमें शरीर का इम्यून सिस्टम गलती से लिवर पर अटैक करता है जिससे लिवर कोशिकाओं में सूजन और क्षति हो जाती है। ऑटोइम्यून लीवर रोगों का सटीक कारण पूरी तरह से समझा नहीं गया है, लेकिन माना जाता है कि ये आनुवंशिक अतिसंवेदान्हीलता और पर्यावरणीय ट्रिगर के संयोजन का परिणाम हैं। बेहतर परिणामों के लिए पसंदीदा ट्रीटमेंट ऑप्शन लिवर ट्रांसप्लांट है।

ब्लडलेस तकनीक उच्च-स्तरीय सर्जरी में उपयोग की जाने वाली सबसे एडवांस्ड तकनीक है, जिसमें ऑर्गन ट्रांसप्लांट एक है। मरीज के शरीर से निकला ब्लड वापस उसके शरीर में चढ़ा दिया जाता है, जिससे बाहरी रक्त चढ़ाने की आवश्यकता नहीं पड़ती है। इस तकनीक की शुरुआत भारत और दक्षिण एशिया में पहली बार मैरिंगो एशिया हॉस्पिटल्स द्वारा की गई है।

डॉ. पुनीत सिंगला, डायरेक्टर एवं एचओडी-लिवर ट्रांसप्लांट, मैरिंगो एशिया हॉस्पिटल्स ने कहा, ”मैंने इन युवा मरीजों में बीमारी से तेजी से रिकवरी करने की क्षमता को देखा है। उनके छोटे कद के बावजूद, ऐसी चुनौतीपूर्ण सर्जरी का सामना करने में उनका साहस और ताकत न केवल उनके परिवारों में बल्कि हम सभी में आशा जगाता है। हर ट्रांसप्लांट मेडिसिन की पावर, टीम वर्क और ऑर्गन डोनर्स की दरियादिली का प्रमाण है। आज हमने उन्हें सिर्फ नया लिवर ही नहीं दिया है; हमने उन्हें नए जोश और आशा के साथ जीवन को अपनाने का मौका दिया है। लिवर शरीर का ऐसा एकमात्र अंग है जिसमें फिर से बढ़ने की क्षमता है। लिवर की फिर से अपने आकार में बढ़ने की क्षमता के कारण ही आंशिक लिवर ट्रांसप्लांट संभव है। एक बार जब लिवर का एक हिस्सा या लोब ट्रांसप्लांट कर दिया जाता है, तो यह मरीज और डोनर दोनों में फिर से बढ़ जाएगा। ऐसे कई कारण हैं जिनकी वजह से मरीजों को लिवर ट्रांसप्लांट की जरूरत पड़ती है। हम अपने मरीजों को बातचीत करने और जागरूकता फैलाने के लिए लाए हैं कि कैसे सर्जरी किसी भी व्यक्ति को लाभ पहुंचा सकती है, जिसे बेहतर जीवन और बेहतर भविष्य के लिए इस सर्जरी की आवश्यकता है।

मैरिंगो एशिया हॉस्पिटल्स के रीजनल डायरेक्टर-एनसीआर, डॉ. अजय डोगरा कहते हैं, ”मैरिंगो एशिया हॉस्पिटल्स में लिवर ट्रांसप्लांट टीम लिवर ट्रांसप्लांट में सेंटर ऑफ़ एक्सीलेंस का गठन करती है। डॉक्टर एंड स्टेज लिवर फेलियर मरीजों में बदलाव लाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। लिवर ट्रांसप्लांट सर्जनों की टीम द्वारा इलाज किए गए दोनों कम उम्र के मरीज ऑर्गन की विभिन्न बीमारियों के साथ आये और उनमें से प्रत्येक ने अलग-अलग चुनौतियां पेश कीं। टीम जिस क्लीनिकल एक्सीलेंस से सुसज्जित है, उससे कम उम्र की लड़कियों को स्वस्थ लिवर का उपहार मिला है जो उन्हें बेहतर जीवन देगा।”

वर्तमान में, भारत में साल में 1800 से अधिक लिवर ट्रांसप्लांट (एलटी) किए जाते हैं। भारत में, 80% से अधिक लिवर ट्रांसप्लांट जीवित डोनर्स (दाताओं) से होते हैं, जबकि हमारे पश्चिमी समकक्षों में लगभग 90% मृत डोनर्स के लिवर से होते हैं। तकनीकी रूप से, जीवित डोनर के लिवर के साथ लिवर ट्रांसप्लांट सर्जरी मृत डोनर के लिवर के ट्रांसप्लांट की तुलना में अधिक चुनौतीपूर्ण है। हालांकि, जो चीज़ समय पर सर्जरी की लगभग 95 प्रतिशत सफलता दर के साथ सर्जरी को सफल बनाती है, वह क्लीनिकल एक्सीलेंस, प्रतीक्षा समय की कमी और ऑर्गन डोनेशन एवं ट्रांसप्लांट के बाद स्वस्थ जीवन के बारे में जागरूकता है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here